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primal power, who gave birth to all elements


आद्या शक्ति

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आदि या आद्या शक्ति महामाया-योगमाया

ब्रह्माण्ड उत्पत्ति पूर्व घोर अंधकार से उत्पन्न सर्वप्रथम महाशक्ति आद्या शक्ति काली! अन्धकार से उत्पन्न होने हेतु 'काली' नाम वाली महाशक्ति, कर्म फल प्रदाता, आदि या आद्या शक्ति।

महा-काली

ज्ञान, शक्ति तथा स्वाभाव के अनुरूप दस महाविद्याओं का संक्षिप्त वर्णन, धर्म, काम, पुरुषार्थ, मोक्ष इत्यादि प्राप्ति के महान विद्या एवं शक्ति प्राप्ति के १० स्रोत, दस महाविद्या।

तारा

कृष्ण वर्णा 'महा-काली', रक्तबीज के रक्त के प्रत्येक बुंद को अपने लम्बे जिह्वा से पान करने वाली तामसी महा-शक्ति, युद्ध कौशल निपुण, काल का भी भक्षण करने वाली, महा-काली।

महा त्रिपुर-सुंदरी

महाविद्या महात्रिपुरसुन्दरी, भंडासुर संहारिका, त्रिलोक में सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर रूप वाली १६ वर्षीय चिर यौवन युवती, सर्व कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ, महा त्रिपुरसुंदरी।

भुवनेश्वरी

चराचर ब्रह्मांड निर्माण की मार्ग-दर्शक तथा प्रेरणा स्रोत ‘देवी भुवनेश्वरी’, स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल तथा पञ्च महा-भूतों की जननी तथा पालनकर्ता, देवी भुवनेश्वरी।

छिन्नमस्ता

महाविद्या छिन्नमस्ता, अनावश्यक एवं अत्यधिक वासनाओं, मनोरथों से उत्पन्न दोष तथा कु-परिस्थिति के प्रतीक और स्व-बलिदान की प्रेरणा स्वरूपी महाशक्ति, देवी छिन्नमस्ता।

भैरवी

त्रिपुर भैरवी, छठी महाविद्या, घनघोर भयंकर तथा डरावने स्वरूप वाली, महान या पूर्ण विनाश से सम्बद्ध,भगवान शिव के विध्वंसक प्रवृति का प्रतिनिधित्व करने वाली, देवी त्रिपुर-भैरवी।

धूमावती

क्रोध-वश अपने पति भगवान शिव का भक्षण करने हेतु, विधवा, भाग्यहीन, दरिद्र तथा कुरूप, अपवित्र स्थानों तथा अन्धकार में रहने वाली देवी धूमावती या अलक्ष्मी, देवी धूमावती।

बगलामुखी

त्रि-भुवन स्तंभन शक्ति से युक्त ब्रह्मास्त्र स्वरूपिणी शक्ति, शत्रुओं से रक्षा कर झूठे प्रकरणों में विजय प्रदान करने वाली देवी पीताम्बरा बगलामुखी, देवी बगलामुखी।

मातंगी

निम्न जाती से सम्बद्ध, उच्छिष्ट भोजन से प्रादुर्भाव होने के कारण उच्छिष्ट मातंगी नाम से विख्यात, इंद्रजाल, तंत्र, संगीत-ललित कला विद्या सम्पन्न देवी मातंगी, देवी मातंगी।

कमला

कमल के समान दिव्य, मनोहर स्वरूप वाली, पवित्रता, प्रकाश तथा स्वच्छता से सम्बंधित, देवी कमला। समुद्र मंथन से रत्न रूप में प्रकट हुई तथा श्री विष्णु की पत्नी, देवी कमला।

सती

दक्ष के कठोर तपश्चर्या द्वारा प्राप्त कन्या सती, आदि शक्ति प्रकृति शिव पत्नी, पति निंदा सुन घोर रूप धारण कर पिता के यज्ञानुष्ठान का विध्वंस करने वाली शक्ति, देव सती।

पार्वती

हिमालय पुत्री 'पार्वती', पुनर्जन्म धारण कर कठोर तप द्वारा भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त कर पत्नी रूप में कैलाश में निवास करने वाली देवी, शिव सहचरिणी, देवी पार्वती।

सरस्वती

ज्ञान, विद्या तथा नव रचना की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती, ब्राह्मणी नाम से प्रसिद्ध एवं प्रजापति ब्रह्मा कि शक्ति या पत्नी, बुद्धि-वाक् शक्ति प्रदाता, देवी सरस्वती।

लक्ष्मी

समुद्र मंथन से प्रादुर्भाव हुई देवी कमला! सत्व गुण सम्पन्न, जगत पालन कर्ता श्री विष्णु अर्धाग्ङिनी महालक्ष्मी, सुख, धन, वैभव, संपत्ति की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी।

दुर्गा

सहस्त्रों नेत्रों से युक्त 'शताक्षी', वर्षों वर्षा न होने पर फल-मूल, शाक प्रदाता 'शाकम्भरी', दुर्गमासुर संहारिका 'दुर्गा', महिषासुर संहारिका 'महिषासुरमर्दिनी'।

महिषासुरमर्दिनी

ब्रह्म-प्रदत्त वर के अभिमान में चूर दैत्य महिषासुर, तीनों लोकों को अपने अधीन कर स्वयं भोक्ता बना, देवताओं के तेज पुंज से प्रकट दिव्य स्त्री महिषासुरमर्दिनी द्वारा उसका वध।

नव-दुर्गा

देवी पार्वती-दुर्गा की शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री रूपी नौ-शक्तियों का परिचय"।
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५१-शक्तिपीठ

सती द्वारा दक्ष-यज्ञ में योगाग्नि से स्वयं को भस्म करना, रक्षा हेतु विष्णु द्वारा अपने सुदर्शन चक्र से सती मृत देह को खंडित करना तथा नाना स्थानों में गिरकर ५१-सती शक्तिपीठों का निर्माण।

१०८-शक्तिपीठ

सती द्वारा दक्षयज्ञ में योगाग्नि से देह त्याग पश्चात्, रुद्र के क्रोधाग्नि से मुक्ति हेतु, विष्णु द्वारा मृत देह विच्छेदन तथा अंगों से निर्मित १०८ शक्ति-पीठ।

कामरूप-कामाख्या पीठ

सती योनि शक्ति-पीठ 'कामाख्या', तंत्र तथा सती पीठों में सर्वश्रेष्ठ पीठ, सर्वप्रथम कामदेव द्वारा पूजित तथा विश्वकर्मा द्वारा निर्मित, कामाख्या पीठ।

तारा पीठ

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित, भव-सागर या जन्म-मृत्यु चक्र से मुक्त करने वाली, मोक्ष दात्री देवी तारा से सम्बद्ध शक्ति पीठ 'तारापीठ', तंत्र-पीठ।

समुद्र-मंथन

इंद्र द्वारा श्री हरि के पारिजात पुष्प के तिरस्कार, दुर्वासा का इंद्र को श्री हीन होने का शाप तथा पुनः श्री सम्पन्नता तथा अमृत प्राप्ति हेतु समुद्र मंथन।


2 comments:

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  2. महाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १५ - ameya jaywant narvekar कामकलाकाल्याः प्राणायुताक्षरी मन्त्रः

    ओं ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं हूं छूीं स्त्रीं फ्रें क्रों क्षौं आं स्फों स्वाहा कामकलाकालि, ह्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ठः ठः दक्षिणकालिके, ऐं क्रीं ह्रीं हूं स्त्री फ्रे स्त्रीं ख भद्रकालि हूं हूं फट् फट् नमः स्वाहा भद्रकालि ओं ह्रीं ह्रीं हूं हूं भगवति श्मशानकालि नरकङ्कालमालाधारिणि ह्रीं क्रीं कुणपभोजिनि फ्रें फ्रें स्वाहा श्मशानकालि क्रीं हूं ह्रीं स्त्रीं श्रीं क्लीं फट् स्वाहा कालकालि, ओं फ्रें सिद्धिकरालि ह्रीं ह्रीं हूं स्त्रीं फ्रें नमः स्वाहा गुह्यकालि, ओं ओं हूं ह्रीं फ्रें छ्रीं स्त्रीं श्रीं क्रों नमो धनकाल्यै विकरालरूपिणि धनं देहि देहि दापय दापय क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षं क्षं क्षं क्षं क्ष्लं क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्रों क्रोः आं ह्रीं ह्रीं हूं हूं नमो नमः फट् स्वाहा धनकालिके, ओं ऐं क्लीं ह्रीं हूं सिद्धिकाल्यै नमः सिद्धिकालि, ह्रीं चण्डाट्टहासनि जगद्ग्रसनकारिणि नरमुण्डमालिनि चण्डकालिके क्लीं श्रीं हूं फ्रें स्त्रीं छ्रीं फट् फट् स्वाहा चण्डकालिके नमः कमलवासिन्यै स्वाहालक्ष्मि ओं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मि, ह्रीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा अन्नपूर्णे, ओं ह्रीं हूं उत्तिष्ठपुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा क्रोधदुर्गे भगवति शमय स्वाहा हूं ह्रीं ओं, वनदुर्गे ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतरतनुरूपे चट चट प्रचट प्रचट कह कह रम रम बन्ध बन्ध घातय घातय हूं फट् विजयाघोरे, ह्रीं पद्मावति स्वाहा पद्मावति, महिषमर्दिनि स्वाहा महिषमर्दिनि, ओं दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा जयदुर्गे, ओं ह्रीं दुं दुर्गायै स्वाहा, ऐं ह्रीं श्रीं ओं नमो भगवत मातङ्गेश्वरि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सर्वदुष्टमृगवशङ्करि सर्वग्रहवशङ्करि सर्वसत्त्ववशङ्कर सर्वजनमनोहरि सर्वमुखरञ्जिनि सर्वराजवशङ्करि ameya jaywant narvekar सर्वलोकममुं मे वशमानय स्वाहा, राजमातङ्ग उच्छिष्टमातङ्गिनि हूं ह्रीं ओं क्लीं स्वाहा उच्छिष्टमातङ्गि, उच्छिष्टचाण्डालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः उच्छिष्टचाण्डालिनि, ओं ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां मुखं वाचं स्त म्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्रीं ओं स्वाहा बगले, ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं धनलक्ष्मि ओं ह्रीं ऐं ह्रीं ओं सरस्वत्यै नमः सरस्वति, आ ह्रीं हूं भुवनेश्वरि, ओं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं आं अश्वारूढायै फट् फट् स्वाहा अश्वारूढे, ओं ऐं ह्रीं नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ऐं ह्रीं स्वाहा नित्यक्लिन्ने । स्त्रीं क्षमकलह्रहसयूं.... (बालाकूट)... (बगलाकूट )... ( त्वरिताकूट) जय भैरवि श्रीं ह्रीं ऐं ब्लूं ग्लौः अं आं इं राजदेवि राजलक्ष्मि ग्लं ग्लां ग्लिं ग्लीं ग्लुं ग्लूं ग्लं ग्लं ग्लू ग्लें ग्लैं ग्लों ग्लौं ग्ल: क्लीं श्रीं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं पौं राजराजेश्वरि ज्वल ज्वल शूलिनि दुष्टग्रहं ग्रस स्वाहा शूलिनि, ह्रीं महाचण्डयोगेश्वरि श्रीं श्रीं श्रीं फट् फट् फट् फट् फट् जय महाचण्ड- योगेश्वरि, श्रीं ह्रीं क्लीं प्लूं ऐं ह्रीं क्लीं पौं क्षीं क्लीं सिद्धिलक्ष्म्यै नमः क्लीं पौं ह्रीं ऐं राज्यसिद्धिलक्ष्मि ओं क्रः हूं आं क्रों स्त्रीं हूं क्षौं ह्रां फट्... ( त्वरिताकूट )... (नक्षत्र- कूट )... सकहलमक्षखवूं ... ( ग्रहकूट )... म्लकहक्षरस्त्री... (काम्यकूट)... यम्लवी... (पार्श्वकूट)... (कामकूट)... ग्लक्षकमहव्यऊं हहव्यकऊं मफ़लहलहखफूं म्लव्य्रवऊं.... (शङ्खकूट )... म्लक्षकसहहूं क्षम्लब्रसहस्हक्षक्लस्त्रीं रक्षलहमसहकब्रूं... (मत्स्यकूट ).... (त्रिशूलकूट)... झसखग्रमऊ हृक्ष्मली ह्रीं ह्रीं हूं क्लीं स्त्रीं ऐं क्रौं छ्री फ्रें क्रीं ग्लक्षक- महव्यऊ हूं अघोरे सिद्धिं मे देहि दापय स्वाहा अघोरे, ओं नमश्चा ameya jaywant narvekar

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